विवेचन सारांश
त्रि विकारों का प्रभाव

ID: 5823
Hindi - हिन्दी
रविवार, 10 नवंबर 2024
अध्याय 14: गुणत्रयविभागयोग
2/3 (श्लोक 6-13)
विवेचक: गीता प्रवीण ज्योति जी शुक्ला


हनुमान चालीसा एवम् दीप प्रज्वलन के पश्चात् बालकों के लिए विवेचन सत्र का प्रारम्भ हुआ। 
पिछले सत्र में सत्त्व, रज और तम तीनों गुणों के विषय में जाना। अब हम जानेंगे कि सत्त्व गुण बढ़ता है तो हम पर क्या प्रभाव पड़ता है, रजो गुण बढ़ता है तो हम पर क्या प्रभाव पड़ता है तथा तमो गुण बढ़ता है तो हम पर क्या प्रभाव पड़ता है। अर्थात् इससे हम पहचान (identify) कर सकेंगे कि हम सतो गुणी अधिक हैं या रजो गुणी अधिक हैं अथवा तमो गुणी अधिक हैं। तात्त्पर्य यह है कि हम यह जान सकते हैं कि हमारे अन्दर कौन से गुण की प्रधानता है। 

14.6

तत्र सत्त्वं(न्) निर्मलत्वात्, प्रकाशकमनामयम्।
सुखसङ्गेन बध्नाति, ज्ञानसङ्गेन चानघ॥14.6॥

हे पाप रहित अर्जुन! उन गुणों में सत्त्वगुण निर्मल (स्वच्छ) होने के कारण प्रकाशक (और) निर्विकार है। (वह) सुख की आसक्ति से और ज्ञान की आसक्ति से (देही को) बाँधता है।

विवेचन- इस श्लोक में बताया गया है कि हमारे अन्दर सत्त्व गुण बढ़ता है तो क्या होता है। अर्थात् सत्त्व गुण से हमारे अन्दर क्या परिवर्तन होते हैं। 
 
सत्त्व गुण बढ़ने से हमारी बुद्धि में स्पष्टता (clarity of mind) बढ़ती है। हमारे सोचने की क्षमता (thinking power) बढ़ जाती है। हमारा मन विवेचन में लगने लग जाता है, पूजा पाठ में लगने लग जाता है, भगवान में लगने लग जाता है। क्योंकि सत्त्व गुण हमें प्रकाश की ओर ले जाता है। यह बहुत स्वच्छ होता है, निर्मल होता है। 

सतो गुणी लोग सब अच्छा ही अच्छा करते हैं, अच्छा सोचते ‍‍‌हैं। एक शब्द में कहें तो भले मानस (goodness) होते हैं। वे सबकी सहायता करने वाले होते हैं अर्थात् helpfull होते हैं। 

जैसे कुछ व्यक्ति होते हैं जिनसे सब सलाह लेना चाहते हैं कि इनसे पूछें कि हमें क्या करना चाहिए। कई बार जब हमें महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने होते हैं और हमें कुछ समझ नहीं आता, तब हम ऐसे मित्र ढूँढते हैं जिन्हें हम से अधिक जानकारी होती है। हम सोचते हैं कि इससे पूछूँ  कि मैं  विज्ञान (science) पढूँ, वाणिज्य (commerce) पढूँ या कला (art) पढूँ। अथवा आपके स्तर पर अन्य कोई भी प्रश्न हो सकता है जिसमें आप अपने मित्र की सलाह लेना चाहें। जिसमें सत्त्व गुण की प्रधानता होती है उसकी  बुद्धि की स्पष्टता (clarity of mind) अधिक हो जाती है। उसकी बुद्धि एकदम प्रखर हो जाती है। अतः हमें अपने अन्दर सत्त्व गुण बढ़ाना चाहिए और उसके लिए हमें भगवान की पूजा करनी चाहिए, भजन भी सुनने चाहिए। ऐसा नहीं हो कि बस कार्टून ही देखते रहें, उसी के गाने सुनते रहें, तब तो हम रजो गुणी हो जायेंगे। हमें तो सत्त्व गुण बढ़ाना है। 

सत्व गुणी बनना है तो हमें क्या करना होगा?
हमें अच्छे-अच्छे काम करने में अपना मन लगाना होगा, भगवान के भजन में अपना मन लगाना होगा। 

बालकों के लिए कुछ प्रश्न-
अपने अनुभव से बताओ कि आपको क्या लगता है कि आपके अन्दर यह सत्त्व गुण है?
एक बालिका ने बताया कि उसको झूठ बोलने की आदत थी परन्तु भगवद्गीता पढ़ने से उसके अन्दर सात्त्विकता आ गई और उसकी झूठ बोलने की आदत समाप्त हो गई। 

कितनी अच्छी बात है कि उस बालिका ने सङ्कल्प लिया और अपनी बुरी आदत छोड़ दी। 
एक अन्य बालक ने बताया कि गीता पढ़ने से पहले वह सबसे सामान्य बात नहीं करता था। परन्तु अब उसका दृष्टिकोण (attitude) बदल गया है और वह सबसे अच्छे से बात करता है। अर्थात उसके अन्दर सात्त्विकता बढ़ रही है।

एक और बालक ने बताया कि गीता पढ़ने से पहले वह छोटी-छोटी बातों पर क्रोध करता था परन्तु अब उन बातों पर ध्यान नहीं देता, ignore कर देता है।

ओम् इग्नोराय नमः

हमें छोटी ही नहीं बड़ी बातों पर भी ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए, (ignore कर देना चाहिए।)

14.7

रजो रागात्मकं(म्) विद्धि, तृष्णासङ्गसमुद्भवम्।
तन्निबध्नाति कौन्तेय, कर्मसङ्गेन देहिनम्॥14.7॥

हे कुन्तीनन्दन! तृष्णा और आसक्ति को पैदा करने वाले रजोगुण को (तुम) रागस्वरूप समझो। वह कर्मों की आसक्ति से देही जीवात्मा को बाँधता है।

विवेचन- दूसरा गुण है, रजो गुण। इससे हमारे अन्दर  राग (attachment) अधिक हो जाता है। यह मेरा bag है, यह मेरी कलम (pencil) है, मेरे कपड़े (dress), मेरे बाल (hair), मेरी  त्वचा (skin), ऐसा करते हुए सब मेरा, मेरा, मेरा कहते हैं। हमारा राग  (attachment) बहुत बढ़ जाता है। जब हम ऐसा कहते हैं कि मेरी कलम है, मैं किसी को नहीं दूँगा तो इसका अर्थ यह है कि उस समय रजो गुण बढ़ा हुआ है। 
जो माँगने पर तुरन्त कलम दे देता है उसका सतो गुण बढ़ा हुआ है। 

तृष्णा- तृष्णा का अर्थ है, पाने की इच्छा। मुझे यह पसन्द है, मुझे तो यह चाहिए ही चाहिए। मुझे तो यह  बेग (bag) लेना ही है किसी भी कीमत पर (at any cost)।

रजो गुण हमारी तृष्णा को बढ़ाता है। हमारे शरीर को बाँधता है। यदि हम पढ़ते समय चिप्स खा रहे हैं और सङ्गीत सुन रहे हैं तो इसका अर्थ है कि हमारे अन्दर रजो गुण बढ़ रहा है। पढ़ाई करते समय क्यों हमें चिप्स खाना है अथवा क्यों हमें T.V. देखना है, क्यों  विवेचन सुनते समय हम  वीडियो बन्द कर रसोईघर से कुछ खाने के लिए लेने जाते हैं? इसका अर्थ है हम शान्ति से बैठ नहीं सकते। हमारे अन्दर रजो गुण बढ़ा हुआ है। हम एक साथ कई काम करते हैं, पढ़ाई करते हुए हम खाना भी खाते हैं, गाने भी सुनते हैं, T.V. भी देखते हैं। दो घण्टे पश्चात् हम देखते हैं कि हमें कुछ याद ही नहीं हुआ, कुछ समझ ही नहीं आया। क्योंकि हमारा  मन विचलित (mind diverted) था। यदि हम चाहते हैं कि हमें कुछ भी पढ़ते ही याद हो जाये, उसके लिए हमें अपनी एकाग्रता (concentration) बढ़ानी होगी। जब हम अपना सतो गुण बढ़ाते हैं तब हमारी एकाग्रता बढ़ती है। 

पढ़ते समय केवल पढ़ाई करनी चाहिए। पूजा करते समय किसी आवाज पर मुड़ कर नहीं देखना है। ध्यान करते समय आँख खोल कर नहीं देखेंगे। आँख खोल ली तो फिर ध्यान कैसा? 

बालकों का ध्यान विवेचन में बनाए रखने के लिए प्रश्न पूछा गया- आपके अन्दर कौन सा रजो गुण बढ़ा हुआ है? 
एक बालक ने बताया कि वह अपनी कीमती वस्तुओं को किसी को भी हाथ नहीं लगाने देता। उसे अपने इस रजो गुण को कम करने की आवश्यकता है।

दूसरे ने बताया कि उससे शान्ति से बैठा नहीं जाता। उसे बिना, हिले शान्ति से बैठने का अभ्यास करना होगा। हमें अपने अन्दर स्थिरता (stability) लानी होगी।

एक अन्य बालिका को अपनी वस्तुओं से अत्यन्त लगाव (attachment) था परन्तु गीता पढ़ने से उसका लगाव (attachment) कम हो गया, यह कितनी अच्छी बात है।

एक बालिका को पढ़ते समय खाने की आदत है। नाश्ते की वस्तुएँ (Snacks) खाने से ध्यान उसी में लगा रहेगा और क्या पढ़ा, कुछ समझ नहीं आयेगा और पढ़ाई को हम सरस्वती माता मानते हैं। विद्या को हम झूठे हाथ तो नहीं लगाते हैं। पढ़ते समय खाने की गन्दी आदत को छोड़ देना चाहिए।

14.8

तमस्त्वज्ञानजं(म्) विद्धि, मोहनं(म्) सर्वदेहिनाम्।
प्रमादालस्यनिद्राभि:(स्), तन्निबध्नाति भारत॥14.8॥

हे भरतवंशी अर्जुन ! सम्पूर्ण देहधारियों को मोहित करने वाले तमोगुण को तुम अज्ञान से उत्पन्न होने वाला समझो। वह प्रमाद, आलस्य और निद्रा के द्वारा देहधारियों को बाँधता है

विवेचन - अब बारी आती है तमो गुण की। हमें कैसे पता चलेगा कि हमारे अन्दर तमो गुण बढ़ा हुआ है। हमारे अज्ञान से, ज्ञान (knowledge) की कमी से हमारा तमो गुण बढ़ जाता है। किसी की सही सलाह को भी हम नहीं मानते। हम कहते हैं हमें जो पसन्द है, हम वही करेंगे। यदि हमें नहीं पता कि वह सही सलाह दे रहा है या नहीं तो हमें अपने बड़ों से पूछना चाहिए। 

तमो गुण हमारे सारे ज्ञान को ढक देता है। जिन्हें कम जानकारी होती है उन्हें हम ढक्कन कहते हैं। ढक्कन यानी जो ढक देता है। जिनमें तमो गुण अधिक होता है उनके अन्दर ज्ञान की कमी होती है। वह आलसी भी होते हैं, उन्हें हमेशा लेटे रहना पसन्द होता है। हमें आठ घण्टे की नींद की आवश्यकता होती है परन्तु उससे अधिक सोते हैं तो हमारे अन्दर तमो गुण अधिक है। कुछ लोग रात में समय से सो जाने पर भी सुबह ग्यारह बजे उठते हैं। पाठशाला जाने के लिए तो उठना ही पड़ता है, लाचारी जो है। पर रविवार आते ही प्रसन्न हो जाते हैं कि अब देर तक सोने को मिलेगा। क्रियाशील (Active) नहीं होते हैं, बस पड़े रहने का मन करता है, ऐसा जब होता है तब हमारा तमो गुण अधिक होता है। कई बार ऐसा होता है कि स्कूल जाने के लिए हम छः बजे उठ गये। फिर सोचते हैं चलो आधे घण्टे बाद उठ जायेंगे, सात बजे ही तो जाना है। फिर देर हो जाने पर जल्दी- जल्दी नाश्ता करते हैं। यदि हम समय से उठ गए होते तो क्या हमें यह भागा- दौड़ी करनी पड़ती? हड़बड़ी करनी पड़ती?  समय से उठ जाने से यह हड़बड़ी ना करनी पड़ती। तमो गुणी नहीं बनना है तो समय से उठ जाना।
 
बालकों से प्रश्न- आप में से कौन-कौन तमो गुणी है?
एक बालिका ने कहा कि वह पहले बहुत देर तक सोती थी परन्तु भगवद्गीता पढ़ने से उसकी देर से उठने की आदत समाप्त हो गयी। अब समय से उठ जाने से उसे  ताजगी (refreshing feel) महसूस होती है।

एक अन्य बालक ने बताया कि गीता पढ़ने से पहले वह रविवार को सुबह आठ बजे उठता था। अब छः बजे ही उठ जाता है। यही नहीं स्कूल जाने के लिए वह साढ़े चार पर ही उठ जाता है। एक घण्टा पढ़ने के पश्चात् वह स्कूल के लिए तैयार होता है।

ब्रह्म मुहूर्त में उठना बहुत अच्छा होता है। उस समय हमारी स्मरण शक्ति (memory) बहुत अच्छी हो सकती है। उस समय हम जो भी पढ़ते हैं तुरन्त याद हो जाता है। 

एक बालक ने पूछा कि वह छुट्टी वाले दिन जल्दी नहीं उठ पाता, क्या करें? 
इसको एक उदहारण से समझते हैं। गीता परिवार के शिविर (केम्प) में activity हो रही थी। एक भैया कुर्सी पकड़कर खड़े थे। उन्होंने कहा कि मुझे इस कुर्सी से छुड़ाओ। कोई भी उन्हें इससे नहीं छुड़ा पाया। जब उन्होंने छोड़ा तब ही कुर्सी छूटी। कुर्सी एक बुरी आदत की तरह है, स्वयं ही छोड़नी पड़ती है। 

14.9

सत्त्वं(म्) सुखे सञ्जयति, रजः(ख्) कर्मणि भारत।
ज्ञानमावृत्य तु तमः(फ्), प्रमादे सञ्जयत्युत॥14.9॥

हे भरतवंशोद्भव अर्जुन! सत्त्वगुण सुख में (और) रजोगुण कर्म में लगाकर (मनुष्य पर) विजय करता है। परन्तु तमोगुण ज्ञान को ढककर एवं प्रमाद में लगाकर (मनुष्य पर) विजय करता है।

विवेचन - इस श्लोक में तीनों गुणों के बारे में बताया गया है कि किस गुण से हमें क्या मिलता है। सत्व गुण से हमें प्रसन्नता (happiness) मिलती है। जब हम सब कुछ अच्छा-अच्छा ही करते हैं, कुछ बुरा नहीं करते तो हम स्वयं ही प्रसन्न होते हैं।
 
आप ही बताएँ जब हम किसी की सहायता करते हैं तो हमें अच्छा लगता है या बुरा? निश्चित ही (Definitely) अच्छा ही लगता है। मन से पूजा करते हैं तो हमें अच्छा लगता है। माँ ने कहा गरीब को केला खिला दो। माँ के कहने से खिला तो दिया पर मन नहीं था। परन्तु मन भी हो और केला खिला भी दिया तो हमें प्रसन्नता (happiness) मिलती है। 

रजो गुण हमें कर्म में लगाता है। हम  क्रियाशील (active)  हो जाते हैं। बैठे-बैठे घास के तिनके तोड़ रहे हैं, नाखून चबा रहे हैं या बालों से खेल रहे हैं। अर्थात् कुछ न कुछ कर रहे हैं।

तमो गुण हमारे ज्ञान (knowledge) को ढक देता है। यह अच्छा नहीं होता। इससे हमारी बुद्धि काम करना बन्द कर देती है। हम चीजों को समझने का प्रयास ही नहीं करते। जो नहीं करना चाहिए हम वह भी करते हैं। हम जानते हैं कि यह सही है फिर भी हम गलत ही करते हैं। इसका अर्थ है कि हमारा तमो गुण अधिक बढ़ा हुआ है। यदि हमें सतो गुण बढ़ाना है तो हमें रजो गुण और तमो गुण को कम करना होगा।

14.10

रजस्तमश्चाभिभूय, सत्त्वं(म्) भवति भारत।
रजः(स्) सत्त्वं(न्) तमश्चैव, तमः(स्) सत्त्वं(म्) रजस्तथा॥14.10॥

हे भरतवंशोद्भव अर्जुन! रजोगुण और तमोगुण को दबाकर सत्त्व गुण बढ़ता है, सत्त्व गुण और तमोगुण को दबाकर रजोगुण (बढ़ता है) वैसे ही सत्त्वगुण (और) रजोगुण को दबाकर तमोगुण (बढ़ता है)।

विवेचन - यह श्लोक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। सत, रज और तम तीनो गुण आपस में मित्र की भाँति होते हैं। जैसे दो मित्र मिलकर तीसरे को दबा देते हैं। तीसरा बेचारा कुछ कर नहीं पाता, इसी भाँति जब सत्व और रज गुण मिलकर प्रधान हो जाते हैं तो तमो गुण दब जाता है। यदि रज और तम मिल जायें तो सतो गुण दब जायेगा।
 
हमारे अन्दर तीनों ही गुण होते हैं परन्तु कोई एक गुण प्रधान होता है। हम सभी कोई न कोई अच्छा कार्य तो करते ही हैं, यह सत्त्व गुण है। रजो गुण के कारण कुछ न कुछ कार्य भी करते ही रहते हैं। हम सोते भी हैं। नहीं सोयेगे तो हमारी आँखें सूज जायेंगी, लाल पड़ जायेंगी, हम परेशान हो जायेंगे। अतः तमो गुण भी आवश्यक है। हम अभ्यास से सतो गुण को बढ़ा सकते हैं।

14.11

सर्वद्वारेषु देहेऽस्मिन्, प्रकाश उपजायते।
ज्ञानं(म्) यदा तदा विद्याद्, विवृद्धं(म्) सत्त्वमित्युत॥14.11॥

जब इस मनुष्यशरीर में सब द्वारों (इन्द्रियों और अन्तःकरण) में प्रकाश (स्वच्छता) और ज्ञान (विवेक) प्रकट हो जाता है, तब जानना चाहिये कि सत्त्वगुण बढ़ा हुआ है।

विवेचन - इसमें भी सत्व गुण के बारे में बताया जा रहा है। कभी-कभी हमारा शरीर और इन्द्रियाँ विवेक से भर जाते हैं। उस समय हमारा सत्त्व गुण बढ़ा हुआ होता है। हम बहुत अच्छा महसूस करने लग जाते हैं। हम त्वरित निर्णय (fast decision) लेने लग जाते हैं। हमारे शरीर में नौ द्वार होते हैं। आँखों से हम देखते हैं, नाक से सूँघते (smell) हैं, और कान से सुनते हैं।

एक कहानी से इसे समझ सकते हैं। 

एक बार एक आदमी का बटुआ (पर्स) खो जाता है जिसमें उसके पैसे और आवश्यक सामग्री थी। वह बटुआ ढूँढ कर लाने वाले को 1000 रुपए का पुरस्कार घोषित कर देता है। एक बच्चे को वह बटुआ मिला जाता है और उस व्यक्ति को वापस कर देता है। साथ ही अपना पुरस्कार भी माँगता है। वह आदमी बच्चे से कहता है कि उस बच्चे ने बटुए में से सौ रूपए निकाल लिए हैं। दोनों में झगड़ा होने लगता है। तभी वहाँ एक साधु आते हैं। वह दोनों का झगड़ा सुलझाने का प्रयास करते हैं। वह पहले बच्चे से पूछते हैं क्या उसने बटुए से सौ रूपए लिए हैं? बच्चा मना कर देता है। तब वह उस आदमी से पूछते हैं कि क्या बटुए में 1100 रूपए थे? वह हाँ कहता है। तब वह साधु महाराज कहते हैं कि इनके बटुए में 1100 रूपए थे। इस बच्चे ने रुपये लिए नहीं। इसका अर्थ है कि यह बटुआ इस व्यक्ति का है ही नहीं, किसी और का है। इसके धन को तो मन्दिर की दान पेटी में डाल देना चाहिए। तब वह आदमी कहता है कि यह बटुआ उसी का है। उसने झूठ बोला था। 

उस आदमी का तमो गुण बहुत बढ़ा हुआ था। उसे पुरस्कार न देना पड़े इसलिए उसने झूठ बोला था। जबकि साधु महाराज का सत्त्व गुण बढ़ा हुआ था, उनके पास ज्ञान का प्रकाश था। उन्होंने सरलता से (easily) झगड़ा सुलझा दिया। 
इस प्रकार आपने दोनों गुणों को एक साथ देख लिया, समझ लिया। 

14.12

लोभः(फ्) प्रवृत्तिरारम्भः(ख्), कर्मणामशमः(स्) स्पृहा।
रजस्येतानि जायन्ते, विवृद्धे भरतर्षभ॥14.12॥

हे भरतवंशमें श्रेष्ठ अर्जुन ! रजोगुण के बढ़ने पर लोभ, प्रवृत्ति, कर्मोंका आरम्भ, अशान्ति और स्पृहा -- ये वृत्तियाँ पैदा होती हैं।

विवेचन- रजो गुण बढ़ने से हमारा लोभ बढ़ता है। हम अपनी ओर से कोई काम आरम्भ (initiate) करते हैं। हमें कुछ खाना है तो हम दौड़ कर जाते हैं, समोसे लेकर आते हैं। शान्ति नहीं रहती। रजो गुण बढ़ने से हमारी इच्छाएँ बढ़ जाती हैं। इच्छाएँ पूरी न होने से अशान्ति आती है। हम प्रसन्न नहीं रहते। जिसके मन में इच्छाएँ (desires) कम रहती हैं वह प्रसन्न रहते हैं। जो लोग प्रसन्न दिखाई देते हैं उनकी इच्छाएँ कम होती हैं। जो लोग गन्दा सा मुँह बनाए रहते हैं, उनकी इच्छाएँ पूरी नहीं होतीं। वे प्रसन्न नहीं रह पाते। उनका मन विचलित (mind disturb) हो जाता है। 
कक्षा में हमारे दस में से दस अङ्क आते हैं तो हमें लगता है कि शिक्षक कक्षा में घोषित करें और प्रशंसा करें। इसका अर्थ है कि हमारा रजो गुण बढ़ा हुआ है। यदि हमारी ऐसी इच्छा नहीं होती है तो इसका अर्थ है कि हमारा रजो गुण इतना बढ़ा हुआ नहीं है। 

14.13

अप्रकाशोऽप्रवृत्तिश्च, प्रमादो मोह एव च।
तमस्येतानि जायन्ते, विवृद्धे कुरुनन्दन॥14.13॥

हे कुरुनन्दन! तमोगुण के बढ़ने पर अप्रकाश, अप्रवृत्ति तथा प्रमाद और मोह – ये वृत्तियाँ भी पैदा होती हैं।

विवेचन- तमो गुण बढ़ने से हमारा अप्रकाश, अज्ञान बढ़ जाता है। कुछ करने की इच्छा नहीं होती है। सही बात भी गलत लगती है। 

अप्रवृत्ति- अर्थात् कामों को टाल देना। कल करेंगे, बाद में करेंगे या नहीं करेंगे। 

प्रमाद- अर्थात् जो नहीं करना चाहिए वह भी हम कर रहे हैं।

मोह- अर्थात् किसी से ज्यादा जुड़ जाना (attached) होना। जब हम किसी से ज्यादा जुड़ जाते हैं तो हमारा तमो गुण अधिक हो जाता है। 

इस प्रकार तमो गुण अधिक होने से अप्रवृत्ति आती है, प्रमाद और मोह बढ़ जाता है। 

एक वन में एक मगरमच्छ और बन्दर में मित्रता हो गयी। बन्दर उसे प्रतिदिन मीठे फल खिलाता था। एक दिन मगरमच्छ की पत्नी ने उससे बन्दर का दिल खाने की इच्छा बताई। उसने कहा जो इतने मीठे फल खाता है, उसका दिल कितना मीठा होगा। मुझे उसका दिल खाना है। मगरमच्छ ने पत्नी की बात मान ली। वह अपने मित्र बन्दर को नदी की सैर कराने के बहाने से अपने साथ ले गया। नदी के बीच में उसमें अपराधी भावना (guilty)  जागृत हुई। उसने अपने मित्र को अपनी पत्नी की इच्छा बता दी। बन्दर ने कहा, अरे मुझे पहले बता दिया होता, मैं तो अपना दिल पेड़ पर ही छोड़कर आया हूँ। मगरमच्छ बन्दर को वापस ले आया। बन्दर ने पेड़ पर छलाँग लगाई और कहा, आज से हमारी मित्रता समाप्त हो गयी। 

हमने देखा मगरमच्छ का तमो गुण इतना बढ़ा हुआ था कि वह सही निर्णय भी नहीं ले पाया।

इस प्रकार हम देखते हैं कि तीनों गुणों का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है। अब यह हमें निश्चित (decide) करना है कि हमारे अन्दर कौन सी बुरी आदत है और उसे हमें कितनी जल्दी छोड़ना है। 

एक बच्ची ने बताया कि वह बिना किसी कारण (unnecessarily) रोती है। 
तो भई, थोड़ा रोना तो ठीक है परन्तु अधिक नहीं। अधिक रोने वाले लोग मानसिक रूप से कमजोर हो जाते हैं। 

एक बच्चे ने बताया कि वह बहुत जल्दी खुश या दुःखी हो जाता है। अब से अपनी आदत को बदलने का प्रयास करेगा।

एक बालक ने बताया कि वह पढ़ाई करते समय इधर-उधर देखता है। विवेचक ने समझाया कि गीता पढ़ने से  एकाग्रता (concentration)  बन जायेगी।  

एक बालिका ने कहा कि उससे गुस्सा  नियन्त्रित (control) नहीं होता। विवेचक ने सङ्कल्प करने को कहा। 

हरि नाम सङ्कीर्तन और  बालकों की जिज्ञासाओं के समाधान के साथ सत्र की समाप्ति हुई। 

प्रश्नोत्तर सत्र 
प्रश्नकर्ता -- 
नित्या दीदी 
प्रश्न -- कुरुक्षेत्र के युद्ध से पहले अर्जुन क्यों घबराए हुए थे?
उत्तर -- अर्जुन अन्याय के विरुद्ध कौरवों से युद्ध करने को तैयार थे, परन्तु जब श्रीकृष्ण ने उनका रथ दोनों सेनाओं के बीच लाकर खड़ा किया तब दोनों ही तरफ अपने प्रियजनों, पितामह, गुरु और स्वजनों को देखकर अर्जुन घबराकर हताश हो गए और युद्ध नहीं करने का निर्णय लिया।

प्रश्नकर्ता - नित्या दीदी 
प्रश्न - महर्षि वेदव्यास जी ने भगवद्गीता युद्ध भूमि में न होकर भी कैसे लिखी?
उत्तर- वेदव्यास त्रिकालदर्शी थे, वे महाभारत की युद्ध भूमि और वहाँ हो रही घटनाएँ अपने दिव्य चक्षुओं द्वारा देख सकते थे। इस तरह उन्होंने गणेशजी को युद्ध का हाल सुनाया और गणेश जी लिखते गए।

प्रश्नकर्ता - वीणा दीदी 
प्रश्न - गणेश जी का मन्त्र कौन सा है?
उत्तर - वैसे तो गणेशजी के लिए कई मन्त्र हैं, सबसे प्रसिद्ध श्लोक है- 

वक्रतुण्ड महाकाय, सुर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा।।
                   
सङ्कीर्तन के साथ आज का सत्र समाप्त  हुआ।