विवेचन सारांश
युद्ध भूमि में संशय की स्थिति
दीप प्रज्वलन एवं गुरु वन्दना के साथ आज के अध्याय का विवेचन प्रारम्भ हुआ।
बालकों से पूछा गया कि उन्होंने कौन-कौन से अध्याय पढ़े हुए हैं? एवं अध्याय के नाम भी पूछे गए?
बालकों के द्वारा बताया गए अध्यायों के नाम-
भक्तियोग, पुरुषोत्तमयोग व दैवासुरम्पद्विभागयोग क्रमशः बारहवाँ, पन्द्रहवाँ व सोलहवाँ अध्याय।
अब हम पहला अध्याय बाद में पढ़ रहे हैं, ऐसा क्यों? इसका उत्तर देते हुए बताया गया कि अब हम अध्याय प्रथम जिसका नाम अर्जुनविषादयोग है वह पढ़ने वाले हैं।
अभी तक हम जान गए हैं कि भक्ति क्या होती है, दैव एवं आसुरी गुण क्या होते हैं? श्रीभगवान को कौन-कौन से गुण पसन्द हैं?
जब बच्चा छोटा होता है तब उसको बोलना नहीं आता है। उसको शब्द नहीं आते हैं, उसे सबसे पहले प्ले ग्रुप में, फिर प्रथम कक्षा में पढ़ने के लिए भेजते हैं। पहले छोटे-छोटे अध्याय पढ़ लो जब हम उन्हें समझ जाएँगे तब हमें अर्जुन की मानसिक स्थिति को समझने की बुद्धि आ जाएगी, इसलिए पहले सरल अध्याय समझ गए उसके बाद प्रथम अध्याय को समझेंगे।
अर्जुन के विषाद के कारण यह अर्जुनविषादयोग कैसे हो गया? यह हम इस अध्याय में देखेंगे।
बालकों से पूछा गया कि उन्होंने कौन-कौन से अध्याय पढ़े हुए हैं? एवं अध्याय के नाम भी पूछे गए?
बालकों के द्वारा बताया गए अध्यायों के नाम-
भक्तियोग, पुरुषोत्तमयोग व दैवासुरम्पद्विभागयोग क्रमशः बारहवाँ, पन्द्रहवाँ व सोलहवाँ अध्याय।
अब हम पहला अध्याय बाद में पढ़ रहे हैं, ऐसा क्यों? इसका उत्तर देते हुए बताया गया कि अब हम अध्याय प्रथम जिसका नाम अर्जुनविषादयोग है वह पढ़ने वाले हैं।
अभी तक हम जान गए हैं कि भक्ति क्या होती है, दैव एवं आसुरी गुण क्या होते हैं? श्रीभगवान को कौन-कौन से गुण पसन्द हैं?
जब बच्चा छोटा होता है तब उसको बोलना नहीं आता है। उसको शब्द नहीं आते हैं, उसे सबसे पहले प्ले ग्रुप में, फिर प्रथम कक्षा में पढ़ने के लिए भेजते हैं। पहले छोटे-छोटे अध्याय पढ़ लो जब हम उन्हें समझ जाएँगे तब हमें अर्जुन की मानसिक स्थिति को समझने की बुद्धि आ जाएगी, इसलिए पहले सरल अध्याय समझ गए उसके बाद प्रथम अध्याय को समझेंगे।
अर्जुन के विषाद के कारण यह अर्जुनविषादयोग कैसे हो गया? यह हम इस अध्याय में देखेंगे।
दो सेनाएँ हैं-
पाण्डवों की सेना और कौरवों की सेना।
बालकों से प्रश्न किए गए-
प्रश्न- कितने पाण्डव थे और उनके नाम क्या-क्या थे?
प्रश्न- कौरव कितने थे? क्या उनकी कोई बहन थी?
बालकों ने उत्तर दिया कि पाँच पाण्डव थे और सौ कौरव थे। कौरवों की एक बहन थी।
जिस प्रकार चन्द्रमा जैसा मुखड़ा उपमा दी जाती है उसी प्रकार सेना की पेड़ से तुलना की गई है।
दो प्रकार के पेड़ हैं,
एक पेड़ धर्म का और एक पेड़ है अधर्म का।
एक पेड़ धर्म का और एक पेड़ है अधर्म का।
भगवान वेदव्यास जी कहते हैं, कौरवों का नेता था दुर्योधन, इसका तना कर्ण था, उस पर खिलने वाले फ़ूल थे दुःशासन व मूल थे धृतराष्ट्र।
दूसरा पेड़ धर्म का है उसके नेता थे युधिष्ठिर, अर्जुन उसका तना थे और उस पर खिलने वाले फूल थे नकुल, सहदेव व उसका मूल थे, भगवान श्रीकृष्ण।
प्रश्न- महाभारत का मूल नाम क्या है?
उत्तर- महाभारत का मूल नाम जयसंहिता है (Story of victory)
जो इसे पढ़ेगा उसके जीवन में सब जगह जीत ही जीत होगी। जो लोग हमें हराना चाहते थे, उन्हें ज्ञात था कि महाभारत पढ़ने से हम जीत जाएँगे इसलिए उन्होंने हमारी बुद्धि में डाल दिया कि हमें महाभारत नहीं पढ़नी चाहिए, महाभारत को घर में नहीं रखना चाहिए, लेकिन हमें अपने ग्रन्थ हमारे घर में रखने चाहिएं। महाभारत का सम्पूर्ण ज्ञान श्रीमद्भगवद्गीता जी में है। यदि महाभारत हमारे घर में रहेगी तो हम उसको पढ़कर कुछ सीखेंगे।
हमारे ग्रन्थ हमारी धरोहर हैं।
1.1
धृतराष्ट्र उवाच:
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे, समवेता युयुत्सवः।
मामकाः(फ्) पाण्डवाश्चैव, किमकुर्वत सञ्जय।।1.1।।
धृतराष्ट्र बोले - हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से इकट्ठे हुए मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया?
विवेचन- धृतराष्ट्र सञ्जय से पूछते हैं कि युद्धभूमि में क्या हो रहा है? मेरे पुत्र और पाण्डु के पुत्र क्या कर रहे हैं?
सञ्जय को इसलिए पता था क्योंकि सञ्जय को दिव्य दृष्टि प्राप्त थी। सञ्जय को वेदव्यास जी ने दिव्य दृष्टि दी थी। वेदव्यास जी त्रिकालदर्शी थे, उन्हें पता था, यह युद्ध हो रहा है वह ठीक नहीं है। युद्ध के एक दिन पहले वेदव्यास जी धृतराष्ट्र से मिलने गए। वे धृतराष्ट्र से बोले यह युद्ध मत होने दो नहीं तो विनाश हो जाएगा। धृतराष्ट्र बोले कि ऐसा मत बोलो, जो होना होगा वह हो जाएगा। मेरे बेटे की सेना बड़ी है। वेदव्यास जी ने कहा कि तुम देखना चाहोगे क्या कि युद्ध कैसे हो रहा है? उन्होंने कहा, सञ्जय युद्ध देखेंगे और सारी स्थिति तुमको सुनाएँगे।
बालकों से प्रश्न पूछा गया कि यह युद्ध कहाँ हो रहा था?
बालकों ने बताया कुरुक्षेत्र में।
कुरुक्षेत्र पहले से तीर्थ क्षेत्र है। कृष्ण जी भी अपनी माता जी और रानियों को लेकर वहाँ पर गए थे। यह स्थान अत्यन्त पवित्र था। उस क्षेत्र पर मृत्युुुुु के पश्चात् जिनके अन्तिम संस्कार नहीं हो पाते थे, उनकी भी वहाँ पर मुक्ति हो जाती थी।
हम समवेत्ता है। समवेत्ता का अर्थ है कि एक ही उद्देश्य के लिए इकट्ठे हुए लोग क्योंकि हम गीता जी का अध्याय समझने के लिए इकट्ठे हुए हैं। इसी तरह वहाँ पर सब युद्ध करने के लिए इकट्ठे हुए थे।
सञ्जय को इसलिए पता था क्योंकि सञ्जय को दिव्य दृष्टि प्राप्त थी। सञ्जय को वेदव्यास जी ने दिव्य दृष्टि दी थी। वेदव्यास जी त्रिकालदर्शी थे, उन्हें पता था, यह युद्ध हो रहा है वह ठीक नहीं है। युद्ध के एक दिन पहले वेदव्यास जी धृतराष्ट्र से मिलने गए। वे धृतराष्ट्र से बोले यह युद्ध मत होने दो नहीं तो विनाश हो जाएगा। धृतराष्ट्र बोले कि ऐसा मत बोलो, जो होना होगा वह हो जाएगा। मेरे बेटे की सेना बड़ी है। वेदव्यास जी ने कहा कि तुम देखना चाहोगे क्या कि युद्ध कैसे हो रहा है? उन्होंने कहा, सञ्जय युद्ध देखेंगे और सारी स्थिति तुमको सुनाएँगे।
बालकों से प्रश्न पूछा गया कि यह युद्ध कहाँ हो रहा था?
बालकों ने बताया कुरुक्षेत्र में।
कुरुक्षेत्र पहले से तीर्थ क्षेत्र है। कृष्ण जी भी अपनी माता जी और रानियों को लेकर वहाँ पर गए थे। यह स्थान अत्यन्त पवित्र था। उस क्षेत्र पर मृत्युुुुु के पश्चात् जिनके अन्तिम संस्कार नहीं हो पाते थे, उनकी भी वहाँ पर मुक्ति हो जाती थी।
हम समवेत्ता है। समवेत्ता का अर्थ है कि एक ही उद्देश्य के लिए इकट्ठे हुए लोग क्योंकि हम गीता जी का अध्याय समझने के लिए इकट्ठे हुए हैं। इसी तरह वहाँ पर सब युद्ध करने के लिए इकट्ठे हुए थे।
सञ्जय उवाच: दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं(व्ँ), व्यूढं(न्) दुर्योधनस्तदा।
आचार्यमुपसङ्गम्य, राजा वचनमब्रवीत्॥1.2॥
संजय बोले - उस समय व्यूहरचनायुक्त पाण्डवों की सेना को देखकर राजा दुर्योधन ने द्रोणाचार्य के पास जाकर यह वचन कहा।
विवेचन- सञ्जय बताते हैं दुर्योधन राजा है। आचार्य द्रोण कौरवों और पाण्डवों दोनों के आचार्य थे। पाण्डवों की सेना क्यों उत्तम है? जबकि श्रीकृष्ण की नारायणी सेना तो दुर्योधन के पास थी।
अर्जुन और दुर्योधन युद्ध के लिए सहयोग मॉंगने कृष्ण जी के पास गए। दुर्योधन पहले आया, वह अहङ्कारी था। वह कृष्ण जी के सिर के पास बैठ गया, अर्जुन पैर के पास जाकर बैठ गए। जब श्रीकृष्ण भगवान उठते हैं तो उनकी दृष्टि अर्जुन की ओर गई। तब उन्होंने बोला कि अर्जुन तुम कैसे आए हो? तो दुर्योधन बोला कि मैं पहले आया हूँ। दोनों कहते हैं कि युद्ध होनेवाला है और आपको हमारा साथ देना है।
श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैं दो विकल्प दूँगा। एक तरफ मैं रहूॅंगा लेकिन मैं युद्ध नहीं करूँगा। दूसरी तरफ मेरी नारायणी सेना।
अर्जुन और दुर्योधन युद्ध के लिए सहयोग मॉंगने कृष्ण जी के पास गए। दुर्योधन पहले आया, वह अहङ्कारी था। वह कृष्ण जी के सिर के पास बैठ गया, अर्जुन पैर के पास जाकर बैठ गए। जब श्रीकृष्ण भगवान उठते हैं तो उनकी दृष्टि अर्जुन की ओर गई। तब उन्होंने बोला कि अर्जुन तुम कैसे आए हो? तो दुर्योधन बोला कि मैं पहले आया हूँ। दोनों कहते हैं कि युद्ध होनेवाला है और आपको हमारा साथ देना है।
श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैं दो विकल्प दूँगा। एक तरफ मैं रहूॅंगा लेकिन मैं युद्ध नहीं करूँगा। दूसरी तरफ मेरी नारायणी सेना।
या तो आप मुझे ले लो या नारायणी सेना।
दुर्योधन कहता है कि मैं नारायणी सेना ही लूँगालूँगा, नारायणी सेना बहुत शक्तिशाली थी। अर्जुन कहते हैं, मुझे तो भगवान आप ही चाहिएं। भले आप युद्ध न करें। आपको मेरे साथ ही रहना पड़ेगा। आप मेरे सारथी बन जाएँ एवं मेरा मार्गदर्शन करो, इसलिए पाण्डवों की सेना उत्तम थी।
पश्यैतां(म्) पाण्डुपुत्राणाम्, आचार्य महतीं(ञ्) चमूम्। व्यूढां(न्) द्रुपदपुत्रेण, तव शिष्येण धीमता।।1.3।।
हे आचार्य! आपके बुद्धिमान शिष्य द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न के द्वारा व्यूहकार खड़ी की हुई पाण्डवों की इस बड़ी भारी सेना को देखिये।
विवेचन- दुर्योधन द्रोणाचार्य को कहता है कि आपके ही शिष्य धृष्टद्युम्न ने आपके विरुद्ध कितनी बड़ी सेना खड़ी कर दी है? आपका विद्यार्थी ही आपको मारने आया है।
द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न थे। इनकी एक कहानी है-
द्रोणाचार्य का वध करने के लिए धृष्टद्युम्न का जन्म हुआ था। द्रोणाचार्य और द्रुपद बहुत घनिष्ठ मित्र थे। बाद में शत्रु बन गए। द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा जब छोटे थे तब द्रोणाचार्य बहुत निर्धन थे। उनके पास बिल्कुल धन नहीं था। पुत्र अश्वत्थामा को दूध पिलाने हेतु भी धन नहीं था। अश्वत्थामा की माता आटे में पानी मिलाकर पिला देती थी। एक दिन अश्वत्थामा अपने एक मित्र के घर गए उनकी माताजी ने उन्हें दूध पिलाया। अश्वत्थामा ने घर आकर अपनी माता जी को कहा कि आप अब तक मुझे क्या पिला रही थी? दूध इतना स्वादिष्ट होता है। द्रोणाचार्य कहते हैं द्रुपद राजा से हम गाय माँग लेते हैं और दूध का प्रयोजन कर लेते हैं। तब द्रोणाचार्य अपने मित्र द्रुपद से मिलने गए।
द्रोणाचार्य वहाँ जाकर द्रुपद से कहते हैं, "तुमने मुझे पहचाना, मै तुम्हारा मित्र हूँ"। द्रुपद को अहङ्कार आ गया। वे बोले, "तुम निर्धन ब्रह्मण हो, तुम मुझे क्यों मित्र बुला रहे हो"।
तब द्रोणाचार्य निश्चय करते हैं कि वे द्रुपद का आधा राज्य लेकर रहेंगे। जब पाण्डवों की शिक्षा पूर्ण हो गई तब पाण्डवों ने द्रोणाचार्य से पूछा कि आपको क्या गुरु दक्षिणा चहिए? तब द्रोणाचार्य कहा कि द्रुपद का आधा राज्य।
अर्जुन कहते हैं कि मैं अकेला ही आधा राज्य लेकर आ जाऊँगा। द्रुपद में अर्जुन से युद्ध करने की ताकत नहीं थी। तब द्रुपद ने यज्ञ में ऐसा पुत्र माँगा जो द्रोणाचार्य का वध करे।
अत्र शूरा महेष्वासा, भीमार्जुनसमा युधि।
युयुधानो विराटश्च, द्रुपदश्च महारथः।।1.4।।
यहाँ (पाण्डवों की सेना में) बड़े-बड़े शूरवीर हैं, (जिनके) बहुत बड़े-बड़े धनुष हैं तथा (जो) युद्ध में भीम और अर्जुन के समान हैं। (उनमें) युयुधान (सात्यकि), राजा विराट और महारथी द्रुपद (भी हैं)।
विवेचन- यहाँ पाण्डवों की सेना में बड़े-बड़े शूरवीर हैं, जिनके बहुत बड़े-बड़े धनुष हैं, उनके नाम है महेष्वासा, जो युद्ध में भीम और अर्जुन के समान हैं। युयुधान, राजा विराट और महारथी द्रुपद।
धृष्टकेतुश्चेकितानः(ख्), काशिराजश्च वीर्यवान्।
पुरुजित्कुन्तिभोजश्च, शैब्यश्च नरपुङ्गवः।।1.5।।
धृष्टकेतु और चेकितान तथा पराक्रमी काशिराज (भी हैं)। पुरुजित् और कुन्तिभोज – (ये दोनों भाई) तथा मनुष्यों में श्रेष्ठ शैब्य (भी हैं)।
विवेचन- धृष्टकेतु, चेकितान तथा पराक्रमी काशिराज पुरुजित् और कुन्तिभोज तथा मनुष्यों में श्रेष्ठ शैब्य हैं।
युधामन्युश्च विक्रान्त, उत्तमौजाश्च वीर्यवान्।
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च, सर्व एव महारथाः।।1.6।।
पराक्रमी युधामन्यु और पराक्रमी उत्तमौजा (भी हैं)। सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु और द्रौपदी के पाँचों पुत्र (भी हैं)। (ये) सब के सब महारथी हैं।
विवेचन- पराक्रमी युधामन्यु और पराक्रमी उत्तमौजा है। सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु और द्रौपदी के पाँचों पुत्र भी हैं। ये सब एक से बढ़कर एक महारथी हैं। यह सब सुनकर भी द्रोणाचार्य ने कोई भी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की।
अस्माकं(न्) तु विशिष्टा ये, तान्निबोध द्विजोत्तम।
नायका मम सैन्यस्य, संज्ञार्थं(न्) तान्ब्रवीमि ते।।1.7।।
हे द्विजोत्तम! हमारे पक्ष में भी जो मुख्य (हैं), उन पर भी (आप) ध्यान दीजिये। आपकी जानकारी के लिये मेरी सेना के (जो) नायक हैं, उनको (मैं) कहता हूँ।
विवेचन- दुर्योधन आचार्य द्रोण से कहता है, हमारे पास भी बहुत सारे महारथी हैं। हमारी सेना में भी बहुत विशिष्ट योद्धा हैं। मैं आपको उनके नाम बताता हूँ।
द्विज अर्थात् जिसका दो बार जन्म हुआ हो। ब्राह्मण का भी दो बार जन्म होता है। एक बार जब उनका जन्म होता है, दूसरा जब उनका जनेऊ संस्कार होता है। सारे ब्राह्मणों में जो सबसे उत्तम है उसको द्विजोतम कहते हैं। यहाँ गुरु द्रोणाचार्य को द्विजोत्तम कहा गया है।
द्विज अर्थात् जिसका दो बार जन्म हुआ हो। ब्राह्मण का भी दो बार जन्म होता है। एक बार जब उनका जन्म होता है, दूसरा जब उनका जनेऊ संस्कार होता है। सारे ब्राह्मणों में जो सबसे उत्तम है उसको द्विजोतम कहते हैं। यहाँ गुरु द्रोणाचार्य को द्विजोत्तम कहा गया है।
भवान्भीष्मश्च कर्णश्च, कृपश्च समितिञ्जयः।
अश्वत्थामा विकर्णश्च, सौमदत्तिस्तथैव च।।1.8।।
आप (द्रोणाचार्य) और पितामह भीष्म तथा कर्ण और संग्राम विजयी कृपाचार्य तथा वैसे ही अश्वत्थामा, विकर्ण और सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा।
विवेचन- दुर्योधन ने अपनी सेना के सम्बन्ध में बताया, आप हैं, भीष्म पितामह हैं, कृपाचार्य हैं। दुर्योधन से जितने भी पाप हुए हैं उनको बढ़ाने वाला अङ्गराज कर्ण था। सञ्जय और कर्ण एक ही जाति के थे। सञ्जय को मन्त्री बनाया गया था, क्योंकि वे बहुत ही ईमानदार थे। उनके मन में नियमों के विरुद्ध करने का कुछ भी नहीं आता था। सञ्जय और दूसरे विदुर भी कौरवों के मन्त्री थे। दोनों बुद्धिमान थे और सही बात का साथ नहीं छोड़ते थे। कर्ण के साथ सूतपुत्र होने के कारण गलत नहीं हुआ अपितु सोच और अहङ्कार के कारण ऐसा हुआ।
पाण्डवों को बारह वर्षों के लिए वनवास हुआ था और तेरहवाँ वर्ष उन्हें अज्ञातवास में बिताना था। कौरवों ने सोचा की पाण्डव तो वनवास में है चलो इनको जाकर थोड़ा नीचा दिखा कर आते हैं। ये सज-धज के अपने परिवार को लेकर पाण्डवों के पास गए। गन्धर्वों ने उनके ऊपर आक्रमण कर दिया और इनका सबकुछ चुरा लिया और उनको बन्दी बना लिया। जब कर्ण ने देखा कि गन्धर्व बहुत शूरवीर हैं। तब कर्ण को अपने मित्र की सहायता करनी चाहिए थी लेकिन वह वहाँ से डर कर भाग गया।
लेकिन युधिष्ठिर धर्म की तरफ थे। युधिष्ठिर ने कहा कि वे हमारे भाई हैं। तब युधिष्ठिर के कहने पर सभी पाण्डवों ने मिलकर दुर्योधन को छुड़वाया था।
अश्वत्थामा, विकर्ण और सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा भी युद्ध करने के लिए आए हैं।
पाण्डवों को बारह वर्षों के लिए वनवास हुआ था और तेरहवाँ वर्ष उन्हें अज्ञातवास में बिताना था। कौरवों ने सोचा की पाण्डव तो वनवास में है चलो इनको जाकर थोड़ा नीचा दिखा कर आते हैं। ये सज-धज के अपने परिवार को लेकर पाण्डवों के पास गए। गन्धर्वों ने उनके ऊपर आक्रमण कर दिया और इनका सबकुछ चुरा लिया और उनको बन्दी बना लिया। जब कर्ण ने देखा कि गन्धर्व बहुत शूरवीर हैं। तब कर्ण को अपने मित्र की सहायता करनी चाहिए थी लेकिन वह वहाँ से डर कर भाग गया।
लेकिन युधिष्ठिर धर्म की तरफ थे। युधिष्ठिर ने कहा कि वे हमारे भाई हैं। तब युधिष्ठिर के कहने पर सभी पाण्डवों ने मिलकर दुर्योधन को छुड़वाया था।
अश्वत्थामा, विकर्ण और सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा भी युद्ध करने के लिए आए हैं।
इन्हीं शब्दों के साथ आज के सुन्दर विवेचन का समापन हुआ।
प्रश्नोत्तर सत्र
प्रश्नकर्ता- इन्दुलेखा दीदी
प्रश्न- प्रथम श्लोक का अर्थ पुनः समझा दीजिए।
उत्तर-
धृतराष्ट्र उवाच
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः। मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय।।1.1।।
धृतराष्ट्र पूछता है कि धर्म क्षेत्र कुरुक्षेत्र में मेरे और पाण्डु के पुत्रों के बीच क्या हो रहा है?
प्रश्नकर्ता- आद्विका दीदी
प्रश्न- L-1 की कक्षाएँ कब से प्रारम्भ हो रही हैं?
उत्तर- L-1 की कक्षाएँ ग्यारह अप्रैल से प्रारम्भ हो रही हैं।
प्रश्नकर्ता- राघव प्रसाद भैया
प्रश्नकर्ता- राघव प्रसाद भैया
प्रश्न- सातवें श्लोक का चौथा चरण पुनः समझा दीजिए।
उत्तर-
अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम। नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते।।1.7।।
इस श्लोक में दुर्योधन आचार्य द्रोण को बता रहे हैं कि हमारी ओर भी अनेक विशिष्ट योद्धा हैं।
प्रश्नकर्ता- राघव प्रसाद भैया
प्रश्न- "सौमदत्तिस्तथैव च।" में सौमदत्ति का क्या अर्थ है?
उत्तर- यह एक राजा का नाम है।